02 March 2018

मैं तेरा प्यार हूँ

क़ता
क़रीब से तेरा दीदार हो गया होता ।
में तेरी सुबह का अखबार हो गया होता ।
तू एक बार मुहब्बत से देख लेता अगर ।
क़सम खुदा की तुझे प्यार हो गया होता ।

गीत
बेमुरव्वत नहीं हूँ वफादार हूँ ।
मैं तेरा प्यार हूँ , मैं तेरा प्यार हूँ ।

ज़िन्दगी भर यूँ ही तुझको चाहूँगा मैं ।
उम्र भर साथ तेरा निभाऊँगा मैं  ।
तेरे क़दमों में रख दूँगा हर इक खुशी ।
छोड़कर तुझको हरगिज़ न जाऊंगा मैं ।

तेरे इज़हार का तेरे इक़रार का ।
मैं तलबगार हूँ मैं तलबगार हूँ ।
मैं तेरा प्यार हूँ मैं तेरा प्यार हूँ ।

तू मुझे देखकर मुस्कुराता था कल ।
भूल बैठा है तू वो हंसी सारे पल ।
जुस्तजू में तेरी दम न जाये निकल ।
आ मेरे साथ आ फिर से तू साथ चल ।

मेरी हर सांस देती है तुझको सदा ।
तू समझता है मैं तुझसे बेज़ार हूँ ।
मैं तेरा प्यार हूँ मैं तेरा प्यार हूँ ।

ये गलत है तुझे भूल बैठा हूँ मैं।
तेरी यादों में ही खोया रहता हूँ मैं ।
प्यार में कोई आयी नहीं है कमी ।
जैसा पहले था मैं अब भी वैसा हूँ मैं ।
इम्तिहाने मुहब्बत का कुछ ग़म नहीं ।

मैं वफादार था मैं वफादार हूँ।
मैं तेरा प्यार हूँ मैं तेरा प्यार हूँ ।

04 February 2015

27 July 2014

EID MUBARAK


ईद मुबारक
ये आरजू मेरे दिल को मुफीद हो जाये |
जब आँख खोलूं अजीजों की दीद हो जाये ||
हिलाल मुल्क में आयें मसर्रतें इतनी |
मेरे वतन के हर इन्साँ की ईद हो जाये ||
                    हिलाल बदायूनी

                   मो – 09412564349

YE AARZU MERE DIL KO MUFEED HO JAYE
JAB AANKH KHOLU AZEEZO’N KI DEED HO JAYE
“HILAL” MULK MEIN AAYEI’N MASARRATEI’N ITNI
MERE WATAN KE HAR INSAA’N KI EID HO JAYE
                                                    HILAL BADAUNI
                                                    Mo- 09412564349

03 November 2013

मेरे होते क्या गम तुझको क्यूँ ये भीगा काजल है |


ग़ज़ल

मेरे होते क्या गम तुझको क्यूँ ये भीगा काजल है |
तेरे चाँद से चेहरे पर क्यूँ छाया काला बादल है ||

तेरी जुल्फें काली घटाएं अम्बर तेरा आँचल है |
तेरा चेहरा चाँद का टुकड़ा और तारों की पायल है ||

साथ अगर तू मेरे हो तो सहरा लगता है गुलशन |
साथ अगर तू मेरे नहीं तो गुलशन क्या है जंगल है ||

तेरी कमर पे नागिन जैसी बल खाती हैं यूँ जुल्फें |
ऐसा लगता है कि जैसे जिस्म नहीं है संदल है ||

मुझको उस दिन से भी मुहब्बत है जिस दिन तुम मिलते थे |
मुझको तुम्हारी याद आती है जब भी आटा मंगल है ||

मैंने जब भी आँखें खोली सामने पाया है तुझको |
रूठने वाले सामने आ जा क्यूँ आँखों से ओझल है ||

तेरा हिलाल अब तुझसे रूठे ये मुमकिन तो नहीं होगा |
ये तेरा है तेरा रहेगा दीवाना है पागल है ||


Hazrat Ali


मनकबत हजरत अली रह .

नजर आता है मैखाना अली का |
मुझे होने दो मस्ताना अली का ||

दहन का गुस्ल लाजिम हो गया है |
ज़बां पर नाम है आना अली का ||

ताअर्रुफ़ की ज़रूरत ही नहीं है |
कि मैं हूँ जाना पहचाना अली का ||

सनद उसको मिली दानिश्वरी की |
जो कहलाया है दीवाना अली का ||

बजुज़ निस्बत के मुमकिन ही नहीं है |

हिलाल इक शेर हो जाना अली का ||

Hazrat Waris Pak Reh.( Deva Sharif )

मनक़बत 

साहिबे मैखाना, पीकर तेरा पैमाना  |
सब होश गँवा बैठा, मै हो गया दीवाना ||

अब इतनी गुज़ारिश है, इकराम ये फरमाना |
या मुझको समो लेना, या मुझमे समा जाना ||

इस दिल के गुलिस्ताँ को, आबाद किया तुमने |
आते जो तुम इसमें, रह जाता ये वीराना ||

तन मन तो मै पहले ही, सब वार चुका तुमपे |
अब जान भी हाज़िर है, मकबूल हो नजराना ||

मै छोड़ के अब तुमको, जाऊं तो कहाँ जाऊ |
तुमसे ही शनासा हूँ, दुनिया से हूँ बेगाना ||

आकर तेरी चौखट पर, मै हो गया शैदाई |
देखा जो तेरा मैंने , अंदाज़े करीमना ||

अब आँख मिचौली का, मै खेल खेलूँगा |
लो ढूँढ लिया तुमको, अब मत कहीं छुप जाना ||

अरमान  यही दिल में, रखता है 'हिलाल' अपने |
नज़रों से पिलाकर कर तुम, कर दो इसे मस्ताना || 

09 August 2013

Eid Mubarak

"Eid Mubarak"



Ye aarzoo mere dil ko mefeed ho jaye
Jab aankh kholun azeezon ki deed ho jaye

‘Hilal’ mulq mein aayein masarratein itni
Mere watan ke har insaa ki eid ho jaye

ये आरज़ू मेरे दिल को मुफीद हो जाये |
जब आँख खोलूं अजीजों की दीद हो जाये ||
‘हिलाल’ मुल्क में आयें मसर्रतें इतनी |
मेरे वतन के हर इनसाँ की ईद हो जाए ||

16 July 2013

Ramzan Mubarak



माहे रमजान में कुरआँ की तिलावत अफज़ल |
जिसने कुरआन सुना उसकी समाअत अफज़ल ||

किस क़दर होंगे शहंशाहे रिसालत अफज़ल |
जब शहंशाहे रिसालत की है उम्मत अफज़ल ||

हमने कुरआँ की तिलावत की सआदत पाई |
हर सआदत से हमें है ये सआदत अफज़ल ||

जिंदगी नामे मुहम्मद पे जो नीलाम हुई |
तब मैं समझूंगा रही जीस्त की कीमत अफज़ल ||

इतना आसान नहीं आशिके बतहा बनना |
पहले सरकारे दो आलम से हो चाहत अफज़ल ||

आरज़ू उनके पसीने की हर इक गुल को है |
क्यूंकि आका के पसीने की है नकहत अफज़ल ||

जब खुदा को भी लुभाती है नबी की सूरत |
फिर हमें कैसे लगे और कोई सूरत अफज़ल ||

क्यूँ पिघलता नहीं बीमार ज़ईफा का दिल |
मेरे सरकार की है शाने अयादत अफज़ल ||

यूँ कोई नाते नबी लिख नहीं सकता ऐ हिलाल |

पहले सरकारे दो आलम की हो शफकत अफज़ल ||

07 July 2013

मेरी हर ओर शोहरत हो रही है...............


गज़ल 

मेरी हर सम्त शोहरत हो रही है – तुम्हारी ही बदौलत हो रही है ||

तुम्हारी मुझसे कुरबत हो रही है – मुहब्बत की विलादत हो रही है || 

सुना है बज़्म में वो आ रहे हैं – मुझे सुनकर मसर्रत हो रही है ||

मुहब्बत की किताबें खुल रही हैं – वफाओं की तिलावत हो रही है ||

चले आये हैं गम मेहमान बनकर – मेरे अश्कों में बरकत हो रही है ||

बस इक इंसान को पाने की खातिर – ज़माने से बगावत हो रही है ||


meri har samt  shohrat ho rahi hai ....... tumhari hi badaulat ho rahi hai

tumhari mujhse qurbat ho rahi hai ...... muhabbat ki wiladat ho rahi hai

suna hai bazm me wo aa rahe hain ..... mujhe sunkar masarrat ho rahi hai

muhabbat ki kitaabein khul rahi hain ....... wafaon ki tilawat ho rahi hai

chale aaye hain gham mehmaan bankar ....... mere ashko me barkat ho rahi hai

bas ik insaan ko paaane ki khatir ..... zamane se baghawat ho rahi hai


30 January 2013

इश्के सरकारे दो आलम


इश्के सरकारे दो आलम 

ये रूह पाक हुई और जिस्म साफ़ हुआ |
करम से उनके मेरा हर गुनाह मुआफ हुआ ||
हिलाल अब कोई ख्वाहिश नहीं रही मुझको |
मेरे नबी से मुझे ऐन शीन काफ हुआ ||

ع ش ق ऐन शीन काफ 

26 December 2012

औरत 'Women' (I pay my tribute to Delhi rape victim Damini with this poem)

(I pay my tribute to Delhi rape victim Damini with this poem)


औरत




औरत ने हर इक दौर में क्यूँ ज़ुल्म सहा है |
औरत है ये औरत यही बस इसकी खता है ||

औरत ने ही माँ बनके हमें चलना सिखाया - औरत ने ही शौहर का हर इक नाज़ उठाया |
औरत ने ही माँ बाप की इज्ज़त को बढाया - किरदार हों कितने भी मिली इससे वफ़ा है |
औरत है ये औरत यही बस इसकी खता है ||

इस मुल्क को औरत की ज़रूरत जो पड़ी है – रजया ये बनी लक्ष्मीबाई ये बनी है |
ये हीर है राधा है ये सीता है सती है – कुर्बानियों का इसको मिला कुछ न सिला है ||
औरत है ये औरत यही बस इसकी खता है

मर्दों ने हवस के लिए कोठे पे नचाया – बाज़ार में भी बेचा इसे जिंदा जलाया |
मजबूर समझ कर इसे दुनिया ने सताया – औरत का अब इस दौर में जीना भी सजा है -
औरत है ये औरत यही बस इसकी खता है ||

तफरीह का उन्वान समझते हो इसे तुम – इंसान है बेजान समझते हो इसे तुम |
क्यूँ ऐश का सामान समझते हो इसे तुम – इस पर न करो ज़ुल्म खुदा देख रहा है ||
औरत है ये औरत यही बस इसकी खता है ||

हर दौर की तखलीक का आगाज़ है औरत – हमदर्द है हमसाया है हमराज़ है औरत |
नग्माते मुहब्बत का हसीं साज़ है औरत – अल्लाह की नेअमत है ये मख्लूके खुदा है ||
औरत है ये औरत यही बस इसकी खता है ||







30 July 2012

आदमी जो आदमी के दर्द से अनजान है |



आदमी जो आदमी के दर्द से अनजान है |
आदमी वो आदमी कब वो तो इक हैवान है ||

ये अहिंसा के पुजारी के वतन को क्या हुआ |
कल जहाँ आबादियाँ थीं आज कब्रिस्तान है ||

ऐ सपेरे तेरे साँपों की ज़रूरत अब नहीं |
अब तो डसने के लिए इन्सान को इंसान है ||

कल मुहब्बत का चलन था आज नफरत का चलन |
कैसा हिन्दुस्तान था अब कैसा हिन्दुस्तान है ||

हर तरफ इंसानियत की आबरू खतरे में है |
ये हमारे वक़्त की सबसे सही पहचान है ||

बेसहारों की मदद को मै सदा तैयार हूँ |
इससे मुझको क्या है मतलब राम या रहमान है ||

कुर्ब में उनके हमारा दिल महकता फूल था |
हिज्र में उनके ये दिल जलता हुआ लोबान है ||

आपके आने से दिल का गुलसिताँ आबाद था |
आपके जाने से दिल का गुलसिताँ वीरान है ||

या इलाही रख मेरी इज्ज़त की तू ही आबरू |
मेरे घर फाका कशी और आ रहा मेहमान है ||


02 March 2012

Mere Nikah Se Pehle Ye Baat Likh Dena..

                   

मेरे निकाह से पहले ये बात लिख देना |
तुम अपने महर में मेरी हयात लिख देना ||

मेरी तमन्ना है हो जाऊं तुमसे मै मन्सूब |
तुम अपना नाम मेरे साथ साथ लिख देना ||

सजा मिले न तुम्हे जुर्मे बेवफाई की |
हर एक जुर्म में तुम मेरा हाथ लिख देना ||

मै उसकी हार तो बर्दाश्त कर नहीं सकता |
खुदाया मेरे ही हिस्से में मात लिख देना ||

सितम शियार जफाकार बेवफा लिखकर |
तुम अपने आप को आला सिफात लिख देना ||

वो जिसका कोई नहीं और क्या लिखोगे उसे |
तुम ऐसा करना मेरा दिल अनाथ लिख देना ||

तुम्हारे तजरुबे दुनिया के काम आएंगे |
हिलाल इश्क के सब तजरुबात लिख देना ||

18 January 2012

मोहताज है हर एक समंदर हुसैन का !!


साक़ी भी है हुसैन के कौसर हुसैन का !
मोहताज है हर एक समंदर हुसैन का !!


दोशे मुबरिका पे बिठाते थे खुद हुज़ूर !
रखते थे कितना ध्यान पयम्बर हुसैन का !!


क्यूँ अर्जे कर्बला तेरा रुतबा न हो बुलंद !
आकर जो तुझमे ठहरा है लश्कर हुसैन का !!


दिल कांप उठा दौड़ के क़दमो पे गिर गए !
देखा जो हुर ने चेहरा-ए-अनवर हुसैन का !!

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नेजे पे लेके चल दिए ज़ालिम सर-ए-हुसैन !
फिर भी बुलंद-ओ-बाला रहा सर हुसैन का !!


उनको रजाए हक पे कटाना था अपना सर !
कुछ कर न पाते वरना सितमगर हुसैन का !!

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बातिल की ताक़तों का उसे खौफो गम नहीं !
जज्बा है जिसके क़ल्ब के अन्दर हुसैन का !!

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नामे यजीद मिट गया दुनिया से ऐ हिलाल !
होता रहेगा तजकिरा घर घर हुसैन का !!