15 October 2011

क्यों अदीब अब तक है खोये ज़ुल्फ़ और रुखसार में !!

हमको रहना चाहिए अब सोह्बते तलवार में !
क्यों अदीब अब तक है खोये ज़ुल्फ़ और रुखसार में !!

जब तलक उलझा रहेगा दामने दिल खार में !
हम सुकू से रह नहीं पाएंगे इस गुलज़ार में !!

नकहते गुल सुबहे नौ शम्सो कमर अंजुम जिया !
नेमतें क्या क्या छुपी है यार के दीदार में !!

फर्द तेरे घर के
सारे
इक से बढ़कर एक है !
मै करू किस
किस
की तारीफें तेरे घरबार में !!

मुद्दतो जिस सांप को हमने पिलाया खूने दिल !
वो डराना चाहता है हमको इक फुस्कार में !!

रोजो शब् मसरूफियत कुछ इस क़दर बढ़ने लगी !
शायरी को वक़्त मिल पाता है बस इतवार में !!

तालिबे शर्म ओ हया हम , आप उरयानी पसंद !
फर्क कितना है हमारे आपके त्यौहार में !!

जैसा रिश्ता माँ में और बेटे में होता है 'हिलाल'
है फ़क़त वैसा ही रिश्ता फन में और फनकार में !!

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