12 October 2009

कमज़र्फ

तू हमारी वजह से ही साहिब -ऐ -मसनद है आज

हम जो चाहें तेरी दस्तार भी ले सकते है

इम्तिहान -ऐ -सब्र मत ले खूगर -ऐ -ज़ुल्म -ओ -सितम

हम कलम को फ़ेंक के तलवार भी ले सकते है

No comments:

Post a Comment