25 October 2010

जब चमन पुरबहार होते हैं

जब चमन पुरबहार होते हैं

खार भी लालाज़ार होते हैं

कौन साथी है दौर-ऐ-ग़ुरबत का

सब बनी के ही यार होते हैं

हम गिला क्या करें जफ़ाओं का

जब सितम बार बार होते हैं

टूट जाते है चन्द बातों से

रिश्ते कम पायदार होते हैं

अजनबी हमसफ़र तो ऐ लोगों

रास्ते का गुबार होते हैं

आज के दौर की अदालत में

बेगुनाह गुनाहगार होते हैं

जिनमे इमरज-ऐ-बुग्ज़-ओ-कीना हो

क़ल्ब वो दाग़ दार होते है

यूँ न अबरू को दीजिये जुम्बिश

हम तो खुद ही शिकार होते है

ये हकीक़त है आज महलों की

मकबरों में शुमार होते हैं

नाज़ खुद पर "हिलाल" मत करना

तुझसे शायर हज़ार होते है

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