माहे रमजान में कुरआँ की
तिलावत अफज़ल |
जिसने कुरआन सुना उसकी समाअत
अफज़ल ||
किस क़दर होंगे शहंशाहे
रिसालत अफज़ल |
जब शहंशाहे रिसालत की है
उम्मत अफज़ल ||
हमने कुरआँ की तिलावत की सआदत
पाई |
हर सआदत से हमें है ये सआदत
अफज़ल ||
जिंदगी नामे मुहम्मद पे जो
नीलाम हुई |
तब मैं समझूंगा रही जीस्त
की कीमत अफज़ल ||
इतना आसान नहीं आशिके बतहा बनना
|
पहले सरकारे दो आलम से हो
चाहत अफज़ल ||
आरज़ू उनके पसीने की हर इक
गुल को है |
क्यूंकि आका के पसीने की है
नकहत अफज़ल ||
जब खुदा को भी लुभाती है
नबी की सूरत |
फिर हमें कैसे लगे और कोई
सूरत अफज़ल ||
क्यूँ पिघलता नहीं बीमार
ज़ईफा का दिल |
मेरे सरकार की है शाने
अयादत अफज़ल ||
यूँ कोई नाते नबी लिख नहीं
सकता ऐ हिलाल |
पहले सरकारे दो आलम की हो
शफकत अफज़ल ||
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