16 July 2013

Ramzan Mubarak



माहे रमजान में कुरआँ की तिलावत अफज़ल |
जिसने कुरआन सुना उसकी समाअत अफज़ल ||

किस क़दर होंगे शहंशाहे रिसालत अफज़ल |
जब शहंशाहे रिसालत की है उम्मत अफज़ल ||

हमने कुरआँ की तिलावत की सआदत पाई |
हर सआदत से हमें है ये सआदत अफज़ल ||

जिंदगी नामे मुहम्मद पे जो नीलाम हुई |
तब मैं समझूंगा रही जीस्त की कीमत अफज़ल ||

इतना आसान नहीं आशिके बतहा बनना |
पहले सरकारे दो आलम से हो चाहत अफज़ल ||

आरज़ू उनके पसीने की हर इक गुल को है |
क्यूंकि आका के पसीने की है नकहत अफज़ल ||

जब खुदा को भी लुभाती है नबी की सूरत |
फिर हमें कैसे लगे और कोई सूरत अफज़ल ||

क्यूँ पिघलता नहीं बीमार ज़ईफा का दिल |
मेरे सरकार की है शाने अयादत अफज़ल ||

यूँ कोई नाते नबी लिख नहीं सकता ऐ हिलाल |

पहले सरकारे दो आलम की हो शफकत अफज़ल ||

No comments:

Post a Comment