12 April 2010

लगता है उसके पास कोई आईना नही

अपनी बुराइयाँ जो कभी देखता नही
लगता है उसके पास कोई आईना नही

गुलशन मे रहके फूल से जो आशना नही
उसका तो खुश्बुओ से कोई वास्ता नही

हम सा वफ़ा परस्त वतन को मिला नही
लेकिन हमारा नाम किसी से सिवा नही

मैं उससे कर रहा हू वफाओं की आरज़ू
जिस शक्स का वफ़ा से कोई राबता नही

तुम मिल गये तो मिल गयी दुनिया की हर खुशी
पास आने से तुम्हारे मेरे पास क्या नही

उनका ख्याल आया तो अशआर हो गये
अशआर कहने के लिए मैं सोचता नही

रहज़न हज़ार मिलते है राहो मे ऐ 'हिलाल'
अब हुमको रहबरी का कोई आसरा नही ,

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