02 June 2010

आशियाँ मेरा रखा है जब शरारों के करीब

आशियाँ मेरा रखा है जब शरारों के करीब
कौन दिल बहलाए फिर जाकर बहारों के करीब

कल मेरी कश्ती डुबोने में उन्ही का हाथ था
आज जो अफ़सोस करते है किनारों के करीब

ज़लज़ले में कितने बच्चे हो गए है कल यतीम
देख लो जाकर ज़रा उन बेसहारों के करीब

मेरे घर की मुफलिसी ज़ाहिर न हो दीवार से
इश्तहारों को लगाया है दरारों के करीब

क़त्ल केर दो मुझको लेकिन एक ख्वाहिश है मेरी
दफन करना मुझको मेरे जानिसारों के करीब

सल्तनत हिन्दोस्तान की उनको वापस मिल गयी
सर बाखं होकर गए है जो मजारों के करीब

देखकर महफ़िल में उनको ये गुमान हमको हुआ
चौध्वी का चाँद जैसे हो सितारों के करीब

पैरहन से उनके खुशबु ऐसे आती है हिलाल
बैठकर आये हो जैसे वो बहारों के करीब

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