शैतान अपना काम बनाकर चला गया
आपस में भाइयों को लड़ाकर चला गया
फिर आदतन वो मुझको सताकर चला गया
हँसता हुआ जो देखा रुलाकर चला गया
उल्फत का मेरी कैसा सिला दे गया मुझे
पलकों पे मेरी अश्क सजाकर चला गया
"जाने से जिसके नींद न आई तमाम रात"
वो कौन था जो ख्वाब में आकर चला गया
बदनाम कर रहा था जो मुझको गली गली
देखा मुझे तो नज़रें झुकाकर चला गया
कातिल को जब वफाएं मेरी याद आ गयीं
तुरबत पे मेरी अश्क बहाकर चला गया
कितनी मशक्कतों से जलाया था इक चराग़
झोंका हवा का आया बुझाकर चला गया
दुनिया जिसे मसीहा समझती है ऐ हिलाल
ज़ख्म-ऐ-जिगर वो और बढाकर चला गया
I am anxiously waiting for your Gazal on OBC in response to Tarhi mushaaira.
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