काश रहबर मिला नहीं होता
मै सफ़र में लुटा नहीं होता
गुंडागर्दी फरेब मक्कारी
इस ज़माने में क्या नहीं होता
हम तो कब के बिखर गए होते
जो तेरा आसरा नहीं होता
आग नफरत की जिसमे लग जाये
पेढ़ फिर वो हरा नहीं होता
हम शराबी अगर नहीं बनते
एक भी मैकदा नहीं होता
हिन्दू मुस्लिम में फूट मत डालो
भाई भाई जुदा नहीं होता
ये सियासत की चाल है लोगो
धर्म कोई बुरा नहीं होता
मंदिरों मस्जिदों पे लढ़ते हो
क्या दिलो में खुदा नहीं होता
मसलहत कुछ तो है 'हिलाल' इसमें
ज़लज़ला यु बपा नहीं होता
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