(I pay my tribute to Delhi rape victim Damini with this poem)
औरत
औरत ने
हर इक दौर में क्यूँ ज़ुल्म सहा है |
औरत है
ये औरत यही बस इसकी खता है ||
औरत ने
ही माँ बनके हमें चलना सिखाया - औरत ने ही शौहर का हर इक नाज़ उठाया |
औरत ने
ही माँ बाप की इज्ज़त को बढाया - किरदार हों कितने भी मिली इससे वफ़ा है |
औरत है
ये औरत यही बस इसकी खता है ||
इस मुल्क को औरत की ज़रूरत जो पड़ी है – रजया ये बनी
लक्ष्मीबाई ये बनी है |
ये हीर है राधा है ये सीता है सती है – कुर्बानियों का
इसको मिला कुछ न सिला है ||
औरत है ये औरत यही बस इसकी खता है
मर्दों ने हवस के लिए कोठे पे नचाया – बाज़ार में भी बेचा
इसे जिंदा जलाया |
मजबूर समझ कर इसे दुनिया ने सताया – औरत का अब इस दौर में
जीना भी सजा है -
औरत है ये औरत यही बस इसकी खता है ||
तफरीह का उन्वान समझते हो इसे तुम –
इंसान है बेजान समझते हो इसे तुम |
क्यूँ ऐश का सामान समझते हो इसे तुम –
इस पर न करो ज़ुल्म खुदा देख रहा है ||
औरत है ये औरत यही बस इसकी खता है ||
हर दौर की तखलीक का आगाज़ है औरत –
हमदर्द है हमसाया है हमराज़ है औरत |
नग्माते मुहब्बत का हसीं साज़ है औरत –
अल्लाह की नेअमत है ये मख्लूके खुदा है ||
औरत है ये औरत यही बस इसकी खता है ||
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