26 December 2012

औरत 'Women' (I pay my tribute to Delhi rape victim Damini with this poem)

(I pay my tribute to Delhi rape victim Damini with this poem)


औरत




औरत ने हर इक दौर में क्यूँ ज़ुल्म सहा है |
औरत है ये औरत यही बस इसकी खता है ||

औरत ने ही माँ बनके हमें चलना सिखाया - औरत ने ही शौहर का हर इक नाज़ उठाया |
औरत ने ही माँ बाप की इज्ज़त को बढाया - किरदार हों कितने भी मिली इससे वफ़ा है |
औरत है ये औरत यही बस इसकी खता है ||

इस मुल्क को औरत की ज़रूरत जो पड़ी है – रजया ये बनी लक्ष्मीबाई ये बनी है |
ये हीर है राधा है ये सीता है सती है – कुर्बानियों का इसको मिला कुछ न सिला है ||
औरत है ये औरत यही बस इसकी खता है

मर्दों ने हवस के लिए कोठे पे नचाया – बाज़ार में भी बेचा इसे जिंदा जलाया |
मजबूर समझ कर इसे दुनिया ने सताया – औरत का अब इस दौर में जीना भी सजा है -
औरत है ये औरत यही बस इसकी खता है ||

तफरीह का उन्वान समझते हो इसे तुम – इंसान है बेजान समझते हो इसे तुम |
क्यूँ ऐश का सामान समझते हो इसे तुम – इस पर न करो ज़ुल्म खुदा देख रहा है ||
औरत है ये औरत यही बस इसकी खता है ||

हर दौर की तखलीक का आगाज़ है औरत – हमदर्द है हमसाया है हमराज़ है औरत |
नग्माते मुहब्बत का हसीं साज़ है औरत – अल्लाह की नेअमत है ये मख्लूके खुदा है ||
औरत है ये औरत यही बस इसकी खता है ||







No comments:

Post a Comment