21 April 2010

हुस्न

तेरे हुस्न -ओ -नजाकत का बदल मै लिख नहीं सकता - कि तेरी शान में कोई ग़ज़ल मै लिख नहीं सकता

तबस्सुम और तेरे गुफ्तार के बारे में क्या लिक्खूं
तेरे सुर्खी भरे रुखसार के बारे मै क्या लिक्खू
तेरी सीरत तेरे किरदार के बारे मै क्या लिक्खू

तेरी पाजेब क़ी झंकार के बारे में क्या लिक्खू - के तेरी शान मै कोई ग़ज़ल मै लिख नहीं सकता

तेरे लहराते आँचल को मै अब तशबीह किस से दूँ
तेरी आँखों के काजल को मै अब तशबीह किस से दूँ
तेरी नाज़ुक सी पायल को मै अब तशबीह किस से दूँ

तेरी धड़कन क़ी हलचल को मै अब तशबीह किस से दूँ - के तेरी शान में कोई ग़ज़ल मै लिख नहीं सकता

तेरी लहराती जुल्फों को घटा मै कह नहीं सकता
तेरी झुकती निगाहों को हया मै कह नहीं सकता
लरजते होठ को तेरे अदा मै कह नहीं सकता

तेरी तारीफ में अब कुछ नया मै कह नहीं सकता -के तेरी शान में कोई ग़ज़ल मै लिख नहीं सकता

मै शेरो में तेरी सदा दिली कैसे दिखाऊंगा
के चेहरे से बिखरती चांदनी कैसे दिखाऊंगा
अब इन तारीकियो में रौशनी कैसे दिखाऊंगा
मै इन लफ्जों से तेरी सादगी कैसे दिखाऊंगा -के तेरी शान में कोई ग़ज़ल मै लिख नहीं सकता

1 comment: