12 April 2010

नाराज़ महबूबा





तुम्ही मेरी ज़रूरत हो तुम्ही पहली मुहब्बत हो |
क़सम कोई भी ले लो तुम बहुत ही ख़ूबसूरत हो ||

तुम्हारे ध्यान से क़ल्ब -ओ -जिगर में रौशनी आये |
तुम्हारी मुस्कराहट ही मेरे लब पर हंसी लाये ||

जो तुम मेरी तरफ देखो मेरे दिल को सुकू आये |
ज़रा हंसकर कभी बोलो मेरे दिल पर ख़ुशी छाए ||

न हो तुम ग़मज़दा ऐसे कि मेरा दिल मचलता है |
तुम्हारे एक इक आंसू से मेरा दिल पिघलता है ||

मुहब्बत का वफाओं का मेरी कुछ तो सिला दे दो |
अब इन बुझती हुई आँखों को थोड़ी सी जिया दे दो ||

नज़र के सामने रहकर नज़र फेरा नहीं करते |
जिसे दिल में बसाया हो उसे तनहा नहीं करते ||


किसी के शोला -ऐ -दिल को यु भड़काया नहीं करते |
के अपने चाहने वाले को तडपाया नहीं करते ||

बिछड़ के मुझसे खुश हो तुम सरासर झूठ लगता है |
तुम्हारी आँख में मैंने तसव्वुर अपना देखा है ||

मुझे मालूम है रातो को तुम भी जग रहे होगे |
तुम्हे मै सोचता हु और मुझे तुम सोचते होगे ||

हर इक शै में फ़क़त मेरा ही चेहरा देखते होगे |
मेरी आहट लगी होगी तो दर पर भी गए होगे ||

मेरे ख्वाबों की दुनिया में अगर तुम खो गए होगे |
मेरी तस्वीर सीने से लगा कर सो गए होगे ||

मगर अब हाल ये है के न तुम ही सो रहे होगे |
इधर मै रो रहा हूँ और उधर तुम रो रहे होगे ||

तुम्हारे क़ुर्ब का आलम मुझे रह रह के तडपाये |
न तुमको नींद आती है न मुझको नींद आ पाए ||

न तुमने बेवफाई की न मैंने बेवफाई की |
खुदा जाने फिर अब कैसी घड़ी आयी जुदाई की ||

मगर इतना समझ लो तुम जुदा हम हो नहीं सकते |
हमारे प्यार के चर्चे कभी कम हो नहीं सकते ||



तुम्हारे साथ मैंने अब तलक जो पल गुज़ारे है |
यकी मानो मेरी आँखों में अब भी वो नज़ारे है ||

कभी नाराज़गी इतनी हुई ये तो बताओ तुम |
भरोसा है अगर मुझपे तो मेरी बात मनो तुम ||

गिले शिकवे भुलाकर सब मेरे दिल के करीब आओ |
तुम्हे मेरी मुहब्बत की क़सम है मान भी जाओ ||

यही है इल्तिजा मेरी यही है आरज़ू मेरी |
तुम्ही हो ज़िन्दगी मेरी तुम्ही हो जुस्तजू मेरी ||

No comments:

Post a Comment